अहिंसा रूप प्रवृत्ति से पुण्याश्रव और हिंसा की निवृत्ति से संवर ।
ज्ञानशाला
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अहिंसा मन, वचन, काय से किसी जीव को मारने को ही कहते हैं।पुण्य-जो आत्मा को पवित्र करता है।व़त-हिंसा, झूठ, चोरी आदि पापो से निवृत होना होता है।संवर-आस्त्रव का निरोध कहलाता है अथवा कर्म रुके वह कर्मोँ का रुकना संवर कहते हैं।अतः अहिंसा रूप प़वति से पुण्याश्रव होता है जबकि हिंसा की निवृति संवर कहलाती है।
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अहिंसा मन, वचन, काय से किसी जीव को मारने को ही कहते हैं।पुण्य-जो आत्मा को पवित्र करता है।व़त-हिंसा, झूठ, चोरी आदि पापो से निवृत होना होता है।संवर-आस्त्रव का निरोध कहलाता है अथवा कर्म रुके वह कर्मोँ का रुकना संवर कहते हैं।अतः अहिंसा रूप प़वति से पुण्याश्रव होता है जबकि हिंसा की निवृति संवर कहलाती है।