श्रद्धा – मेरा डॉक्टर/धर्म ठीक कर देगा,
अनुभव – मेरा डॉक्टर/धर्म ही ठीक कर पायेगा ।
यदाकदा(जब बीमारी असाध्य/पापोदय तीव्र हो) ठीक ना हो पायें तब भी श्रद्धा कम नहीं होनी चाहिये ।
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उक्त कथन सत्य है कि श्रद्वा होना कि मेरा डाक्टर या धर्म ठीक कर देगा लेकिन अनुभव का मतलब मेरा डाक्टर और धर्म ही ठीक कर पायेगा। यदा-कदा जब बीमारी असाध्य और पापोदय तीव्र भी हो और ठीक न हो पाये तब भी श्रद्वा कम नहीं होना चाहिए। अतः श्रद्वा ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है, इसके बिना जीवन दुर्लभ होता है।
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उक्त कथन सत्य है कि श्रद्वा होना कि मेरा डाक्टर या धर्म ठीक कर देगा लेकिन अनुभव का मतलब मेरा डाक्टर और धर्म ही ठीक कर पायेगा। यदा-कदा जब बीमारी असाध्य और पापोदय तीव्र भी हो और ठीक न हो पाये तब भी श्रद्वा कम नहीं होना चाहिए। अतः श्रद्वा ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है, इसके बिना जीवन दुर्लभ होता है।