श्रमण / श्रावक

श्रमण भोगों को निष्परिग्रह-भाव से ग्रहण करते हैं, श्रावक परिग्रह-भाव से,
श्रमण को बढ़िया आहार भी रसना इंद्रिय को नियंत्रण करने का अभ्यास कराता है, श्रावक को अच्छा आहार हो या बुरा, सब रसना इंद्रिय को निमंत्रण का अभ्यास कराते हैं ।

मुनि श्री महासागर जी

Share this on...

4 Responses

  1. परिग़ह का मतलब यह मेरा है और इसका स्वामी हूं, यह ममत्व भाव होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि श्रावक परिग़ह भाव में रहता है लेकिन श्रमण भोगों को निष्परिग़ह भाव से ग़हण करते हैं।
    श्रमण को बढ़िया आहार भी रसना इन्द्रियों को नियंत्रण करने का अभ्यास करता है लेकिन श्रावक रसना इन्द्रियों पर नियन्त्रण नहीं करता है।

    1. परिग्रह = मूर्छा।
      ठंडी हवा का स्पर्श आदि से मूर्छा नहीं रखना।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

August 30, 2021

July 2024
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
293031