संगति

गांव में रहो तो वैसी ही भाषा, वैसा ही आचरण हो जाता है, शहर की बात तो कर लेते हैं पर वैसी भाषा और आचरण नहीं कर पाते हैं ।
एक बार शहर में आ गये तब वहाँ जैसा व्यवहार आदि होने लगता है तथा गांव की याद भी नहीं आती है ।
यही संसार और वैराग्य में होता है ।

ब्र. नीलेश भैया

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