सराग-सम्यग्दृष्टि के भोगों में निर्जरा, हवा का स्पर्श आदि जैसे भोगों में ही मानें ।
वीतराग सम्यग्दृष्टि के लिये समयसार में Unconditional भोगों से निर्जरा मानी है ।
मुनि श्री सुधा सागर जी
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6 Responses
सम्यग्दर्शन उसी को हो सकता है जिसे सच्चे देव शास्त्र के प़ति श्रद्बान हो। जो भोगों से निर्जरा करता है वही वीतरागी सम्यग्द्रष्टि होता है। यह गुण वीतरागी साधुओं में ही मिलता है।
सराग-स.द्रष्टि के सामान्य गृहस्थी वाले भोग भी होते हैं तथा बिना इच्छा किये, ठंडी हवा का स्पर्श आदि भी ;
वीतराग-स.द्रष्टि तो निर्विकल्प समाधि में रहता है सो उसके दूसरे प्रकार के भोग ही हो सकते हैं । इसलिये condition लगाने की आवश्यकता नहीं ।
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सम्यग्दर्शन उसी को हो सकता है जिसे सच्चे देव शास्त्र के प़ति श्रद्बान हो। जो भोगों से निर्जरा करता है वही वीतरागी सम्यग्द्रष्टि होता है। यह गुण वीतरागी साधुओं में ही मिलता है।
Can its meaning be explained please?
सराग-स.द्रष्टि के सामान्य गृहस्थी वाले भोग भी होते हैं तथा बिना इच्छा किये, ठंडी हवा का स्पर्श आदि भी ;
वीतराग-स.द्रष्टि तो निर्विकल्प समाधि में रहता है सो उसके दूसरे प्रकार के भोग ही हो सकते हैं । इसलिये condition लगाने की आवश्यकता नहीं ।
Okay.
I feel that, “हवा का स्पर्श आदि”, ke pahle, “samaayik ke time”, add karne se, aur clear ho jaayega.
सामायिक के समय के अलावा भी बिना इच्छा के ठंडी हवा के स्पर्श आदि के समय भी निर्जरा मानना होगी ।