सम्यग्दृष्टि / मिथ्यादृष्टि

बाह्य क्रियायें दोनों की एक सी,
सम्यग्दृष्टि उन क्रियाओं को विभाव मानकर, जबकि मिथ्यादृष्टि स्वभाव मानकर करता है।

मुनि श्री सुधासागर जी

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One Response

  1. विभाव का तात्पर्य स्वभाव के विपरीत परिणमन करना होता है। कर्म के उदय से होने वाले जीव के रागादि भावों को विभाव कहा गया है। उपरोक्त कथन सत्य है कि सम्यग्द्वष्टि उन क्रियायों को विभाव मान कर करता है, जबकि मिथ्याद्वष्टि स्वभाव मानकर करता है। अतः जीवन में सम्यग्दर्शन के भाव हमेशा होना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।

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