निचले गुणस्थानों में सम्यग्दृष्टि को भय तो होगा पर अनंतानुबंधी वाला नहीं ।
जैसे सांप से डरेगा, पर मारेगा नहीं ।
आर्यिका विज्ञानमति माताजी
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3 Responses
अनंतानुबंधी कषाय का एक रुप है,इस कषाय के उदय में सम्यग्दर्शन उत्पन्न नहीं होता है, इसके चार रुप है।
गुणस्थान मोह और योग के माध्यम से जीव के परिणाम में उतार चढाव होता रहता है।
अतः उक्त परिभाषाओं से उपरोक्त कथन सत्य है कि निचले गुणस्थानों में सम्यग्दृष्टि को भय तो होगा पर अनंतानुबंधी वाला नहीं, जैसे सांप से डरेगा लेकिन मारेगा नहीं।
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अनंतानुबंधी कषाय का एक रुप है,इस कषाय के उदय में सम्यग्दर्शन उत्पन्न नहीं होता है, इसके चार रुप है।
गुणस्थान मोह और योग के माध्यम से जीव के परिणाम में उतार चढाव होता रहता है।
अतः उक्त परिभाषाओं से उपरोक्त कथन सत्य है कि निचले गुणस्थानों में सम्यग्दृष्टि को भय तो होगा पर अनंतानुबंधी वाला नहीं, जैसे सांप से डरेगा लेकिन मारेगा नहीं।
जयजिनेंद्र 🙏,
क्या नो-काषायों के भी 4भेद…. अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्जुलन होते हैं…. क्रोध, मान, माया लोभ की तरह ?
नहीं,
क्योंकि नो-कषायें तो खुद ही mild होती हैं ।