दोनों एक ही माँ (वेदनीय) की बेटियाँ हैं, फिर एक प्रिय, दूसरी अप्रिय क्यों ?
शीत में …
साता – कंबल ओढ़ कर कपकपी है,
असाता – बिना कंबल ओढ़े कपकपी ।
दोनों में मन तो कपकपाता है/ चलायमान होता ही है,
सिर्फ साता के उदय में अनुकूल सुविधा मिल जाती है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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4 Responses
साता,असाता यह सब कर्म के उदय होते हैं।साता कर्म का मतलब जिस कर्म के उदय से देवादि गतियां जैसे इन्द़िय और मन सम्बन्धी सुख की प्राप्ति होती है।असाता कर्म का मतलब जिस कर्म के उदय में जीव अनेक प्रकार के दुःख को वेदन करता है।
अतः जो उदाहरण दिया गया है उससे स्पष्ट है कि साता असाता कर्म से होने वाले होते हैं।
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साता,असाता यह सब कर्म के उदय होते हैं।साता कर्म का मतलब जिस कर्म के उदय से देवादि गतियां जैसे इन्द़िय और मन सम्बन्धी सुख की प्राप्ति होती है।असाता कर्म का मतलब जिस कर्म के उदय में जीव अनेक प्रकार के दुःख को वेदन करता है।
अतः जो उदाहरण दिया गया है उससे स्पष्ट है कि साता असाता कर्म से होने वाले होते हैं।
“कंबल ओढ़ कर कपकपी” kaise hoti hai?
कम्बल ओढ़ कर कपकपी का अनुभव मुम्बई वालों को नहीं हो सकता है, इसके लिए तो सिर्फ़ एक कम्बल लेकर, coldwave में, सोनागिर जी में, एक रात गुजारनी होगी ।
Okay.