हर्ष/शोक

मिट्टी के जिस बर्तन में तुम स्वादिष्ट भोज्य लेकर हर्षित हो रहे हो, वह कुम्हार की भट्टी में तपकर आता है ।
बांसुरी पहले छेद कराने का शोक सह चुकी है ।
निर्विकल्प अवस्था में ही हर्ष/शोक रहित स्थिति रहती है ।

श्री ख़लील ज़िब्रान

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