ज्ञान / प्रेम
ज्ञान से चलने वाले को शून्य होना पड़ता है,
और
प्रेम से चलने वाले को पूर्ण।
लेकिन
शून्यता और पूर्णता एक ही घटना के दो नाम हैं।
शून्य से ज़्यादा पूर्ण और कोई चीज़ नहीं है,
और
पूर्ण से ज़्यादा शून्य कोई और चीज़ नहीं है।
(नीलम)
ज्ञान से चलने वाले को शून्य होना पड़ता है,
और
प्रेम से चलने वाले को पूर्ण।
लेकिन
शून्यता और पूर्णता एक ही घटना के दो नाम हैं।
शून्य से ज़्यादा पूर्ण और कोई चीज़ नहीं है,
और
पूर्ण से ज़्यादा शून्य कोई और चीज़ नहीं है।
(नीलम)
4 Responses
Can the literal and symbolic meaning of the post be explained please?
ज्ञान की शून्यता याने संकल्प विकल्पों की समाप्ती जैसे केवली भगवान के ।
प्रेम की पूर्णता याने और की चाह की समाप्ती ।
तो
ज्ञान शून्य तभी जब पूर्ण हो ।
प्रेम पूर्ण तभी जब शून्य हो जाय ।
बहुत सुंदर विचार है ।
सच तो यह है कि शून्य अंतर्मुखी होने का प्रतीक है । जहाँ प्रेम और करुणा से आंखें भीगने लगती हैं। जहाँ पहुँचकर आत्मानुभूति होने लगती है ।
जहाँ प्राणीमात्र के प्रति प्रेम और करुणा से आंखें भीगने लगती हैं ।
जहाँ अंतस से गूंज उठती है चरैवेति चरैवेति की ।
अरुणा।
Okay.