ज्ञान की शून्यता याने संकल्प विकल्पों की समाप्ती जैसे केवली भगवान के ।
प्रेम की पूर्णता याने और की चाह की समाप्ती ।
तो
ज्ञान शून्य तभी जब पूर्ण हो ।
प्रेम पूर्ण तभी जब शून्य हो जाय ।
बहुत सुंदर विचार है ।
सच तो यह है कि शून्य अंतर्मुखी होने का प्रतीक है । जहाँ प्रेम और करुणा से आंखें भीगने लगती हैं। जहाँ पहुँचकर आत्मानुभूति होने लगती है ।
जहाँ प्राणीमात्र के प्रति प्रेम और करुणा से आंखें भीगने लगती हैं ।
जहाँ अंतस से गूंज उठती है चरैवेति चरैवेति की ।
अरुणा।
4 Responses
Can the literal and symbolic meaning of the post be explained please?
ज्ञान की शून्यता याने संकल्प विकल्पों की समाप्ती जैसे केवली भगवान के ।
प्रेम की पूर्णता याने और की चाह की समाप्ती ।
तो
ज्ञान शून्य तभी जब पूर्ण हो ।
प्रेम पूर्ण तभी जब शून्य हो जाय ।
बहुत सुंदर विचार है ।
सच तो यह है कि शून्य अंतर्मुखी होने का प्रतीक है । जहाँ प्रेम और करुणा से आंखें भीगने लगती हैं। जहाँ पहुँचकर आत्मानुभूति होने लगती है ।
जहाँ प्राणीमात्र के प्रति प्रेम और करुणा से आंखें भीगने लगती हैं ।
जहाँ अंतस से गूंज उठती है चरैवेति चरैवेति की ।
अरुणा।
Okay.