मन
जितना बड़ा “प्लोट” होता है उतना बड़ा “बंगला” नहीं होता,
जितना बड़ा “बंगला” होता है उतना बड़ा “दरवाजा” नहीं होता,
जितना बड़ा “दरवाजा” होता है उतना बड़ा “ताला” नहीं होता,
जितना बड़ा “ताला” होता है उतनी बड़ी “चाबी” नहीं होती ।
परन्तु “चाबी” का पूरे बंगले पर अधिकार होता है।
इसी तरह मानव के जीवन में बंधन और मुक्ति का आधार सूक्ष्म मन की चाबी पर ही निर्भर होता है।
(अपूर्व श्री)