Month: February 2010

दुनिया

आचार्य श्री विद्यासागर जी के संघ का विहार चल रहा था, बाहर कहीं एक गाना चल रहा था, “दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में

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अशुभ नामकर्म बंध

प्रशंसा चाहना तथा 3 गारव – 1 ऋद्धि ( इष्ट द्रव्य का लाभ ), 2 रस ( मिष्ट भोजन आदि की प्राप्ति ), 3 सात

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धर्म

धर्म को भी बसाओ, बिसारो मत वरना अपने आप को पहचान नहीं पाओगे ।

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देवायु बंध

सम्यग्दर्शन के साथ अणुव्रत और महाव्रत, मिथ्यादर्शन के साथ बालतप – अकाम निर्जरा, समीचीन धर्म श्रवण, आयतन सेवा तथा सराग संयम से । कर्मकांड़ गाथा

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पुरूषार्थ

साधु को जंगल में एक बूढ़ी लोमड़ी दिखाई दी, जिसके चारौ पैर नहीं थे, साधु परेशान – ये ज़िंदा कैसे है? खाती कैसे है? इतने

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मनुष्यायु बंध

मंद कषायी यानि मृदु भाषी, असंयम, मध्यम गुणों, मरण समय पर संक्लेश रहित परिणामों से । कर्मकांड़ गाथा : – 806

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घ्रणा

आचार्य श्री दुसरे मुनिराजों के साथ शौच के लिये जाते थे वहां पर कचड़े का ढ़ेर था और उससे बहुत दुर्गंध आती थी । मुनिराजों

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तिर्यंचायु बंध

विपरीत मार्ग उपदेश, मायाचारी, 3 शल्य ( मिथ्यात्व, माया और निदान ), मरण समय आर्तध्यान से । कर्मकांड़ गाथा : – 805

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नरकायु बंध

मिथ्यादर्शन, बहुत आरंभ, अपरिमित परिग्रह, कुशील, तीव्र लोभ, रौद्र परिणाम और पाप करने में बुद्धि रखने से बंधती है । कर्मकांड़ गाथा : – 804

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Action

Successful people don’t plan results, They just plan proper Beginning and Action. (Mr. Sanjay)

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मंगल आशीष

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February 28, 2010