Month: December 2022
निद्यत्ति / निकाचित
अपूर्वकरण में निद्यत्ति/निकाचित पने की व्युच्छित्ति….सिद्धांत है। देवदर्शन से व्युच्छित्ति….भक्ति की अपेक्षा। मुनि श्री सुधासागर जी
संसार और संयम
“संसार” में – छोटे “स” से बड़ा “सा” बन जाता है यानि संसार बढ़ता ही जाता है। संयम यानि सं+यम – “स” से संयम/ सावधानी,
क्षायिक भाव/चारित्र
8-10 गुणस्थान में कषाय/ मोह का क्षय तो हुआ नहीं क्षायिक भाव/चारित्र कैसे कह दिया ? क्षपक-श्रेणी वाला क्षय करेगा ही/ उसी के लिये क्षपक
संगति
अगर कोई मक्खी सब्जी तौलते समय तराजू पर बैठ जाए तो उसकी कीमत दस पैसे, लेकिन वही मक्खी अगर सोना तौलती तराजू पर बैठ जाए
जीव / पुद्गल
4 द्रव्य तो उदासीन हैं, जीव और पुद्गल में युद्ध चलता रहता है। चूंकि संसार काजल कोठरी है सो कालिख लगती ही है और कालिख
सकारात्मक दृष्टि
भारत को विकासशील तथा पश्चात देशों को विकासवान कहा जाता है। इसमें बुरा क्या ? हमारा तो इतिहास कहता है कि हम हजारों वर्ष पहले
तीसरे गुणस्थान से गति
तीसरे गुणस्थान से गति करके पहले अथवा चौथे गुणस्थान में ही जाते हैं; 5, 6, या 7वें गुणस्थान में नहीं जाते। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
वाचना
वाचना का अर्थ है प्रदान करना/ शिष्यों को पढ़ाना। Self Study नहीं, इससे ही एकांत-मत पनप रहे हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी
आहार
बिना आहार के आदिनाथ भगवान करीब 13 माह रहे, बाह्य कारण….वज्रवृषभ नाराच संहनन, अंतरंग संकल्प। सामान्यत: विहार तथा आत्मध्यान के लिये आहार आवश्यक होता है
अवस्था
युवावस्था में जो मांसपेशियाँ शक्त्ति देती हैं, वही वृद्धावस्था में बोझ बन जाती हैं/शक्त्ति क्षीण करती हैं। चिंतन
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