Month: May 2024
जीव
जीव जब तक 10 प्राणों से अतीत नहीं होता तब तक उसका एहसास नहीं होता जैसे पानी में मिठास का एहसास तभी होता है जब
प्रवचन
प्रवचन सिर के ऊपर से निकले तो वक्ता की कमी, हृदय के ऊपर से निकले तो श्रोता की कमी। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
स्त्यानगृद्धि / बैर
स्त्यानगृद्धि में जीव नींद में उठकर हत्या तक कर आता है। यदि किसी के प्रति बैर है तो नींद में उसकी हत्या करने की संभावना
अर्थ / परमार्थ
जब तक व्यक्ति खुद अपने को संसार के लिये अर्थपूर्ण मानेगा, वह परमार्थ में अर्थहीन रहेगा। जब संसार के लिये अर्थहीन हो जायेगा तब परमार्थ
ज्ञान चेतना
कर्म, नोकर्म, भावकर्म से जुड़ा है जीव। जब तक पहली दो चेतनाओं(कर्मफल, कर्म चेतना) से ऊपर नहीं उठता तब तक ज्ञान चेतना का अनुभव नहीं।
Tension
अपने सारे Tensions गुरु/ भगवान को Transfer कर दें। जैसे बचपन में माँ को Transfer करके सो जाते थे, वह जागकर ध्यान रखतीं थीं। पर
तीर्थंकरों की अवगाहना
आदिनाथ भगवान की 500 धनुष से शुरू करके 50-50 धनुष कम करते-करते 100 धनुष 9वें भगवान की। 10 वें से 14वें तक 10-10 धनुष कम
त्याग
सही त्याग वस्तु का नहीं, उसके प्रति लगाव का होता है। इसीलिये तप को त्याग के पहले कहा जाता है। तप से मोह कम होता
निमित्त नैमित्तिक संबंध
सूर्य के निमित्त से मैं गरम होता हूँ, पर गर्मी मेरी है। यह निमित्त नैमित्तिक संबंध से हुआ, हैं दोनों स्वतंत्र। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर
भोग / सुविधायें
भोगादि से भी कुछ सकारात्मक ले सकते हैं। इनका भी महत्व होता है। भोग/ सुविधाओं को पूरा न भोगने से इच्छाओं का निरोध होता है,
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