पुरूषार्थ
साधु को जंगल में एक बूढ़ी लोमड़ी दिखाई दी, जिसके चारौ पैर नहीं थे, साधु परेशान – ये ज़िंदा कैसे है? खाती कैसे है? इतने में एक शेर आया, मुँह से खाना उगला, लोमड़ी ने खाना खाया, शेर चला गया।
साधु को उस नाचीज़ लोमड़ी के खाने और सुरक्षा के इंतज़ाम को देख, दैवीय शक्ति पर पूर्ण विश्वास हो गया। वह भी पास में ही नियम लेकर बैठ गया कि अब तो मेरे भोजन/सुरक्षा का इंतज़ाम देवता ही करेंगे। बहुत दिन निकल गये देव ने कुछ नहीं किया, साधू नाराज हो, देव को बुरा भला कहने लगा।
देव प्रकट हुये और पूंछा नाराज क्यों हो रहे हो ?
साधु – तुम इस लोमड़ी के लिये तो सब इंतज़ाम करते हो पर सबसे श्रेष्ठ कृति, इस मनुष्य के लिये कुछ नहीं किया, तीन दिन से भूखा बैठा हुआ हूँ।
देव बोले कि लोमड़ी से क्यों अपनी तुलना करते हो, तुमको तो हाथ, पैर, बुद्धि, सब मिला है, तुम तो शेर से भी श्रेष्ठ हो, अपना इंतज़ाम खुद कर सकते हो, शेर की तरह दूसरे निर्बलों का भी उपकार कर सकते हो, देव का मुँह क्यों ताकते हो !! पुरूषार्थ करो।