बंध तो हमेशा होता ही रहता है,
लेकिन
जिनेंद्र भगवान की भक्ति करते समय ऐसी प्रकृतिओं का बंध होता है, जो बंध को काटने में कारण-भूत होती हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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बंध का मतलब कर्म का आत्मा के साथ एक क्षेत्रावगाह होना होता है,यह दो प्रकार के होते हैं भाव और द़व्य बंध। निर्जरा का मतलब जिस प्रकार आम आदि फल पक कर वृक्ष से प़थक हो जाता है उसी प्रकार भला बुरा फल देकर कर्मों का झड़ जाना है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि बंध तो हमेशा होता रहता है लेकिन जिनेन्द्र भगवान की भक्ति करते समय ऐसी प़कृतिओ का बंध होता है जो बंध को काटने में भी सहायक होती है।
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बंध का मतलब कर्म का आत्मा के साथ एक क्षेत्रावगाह होना होता है,यह दो प्रकार के होते हैं भाव और द़व्य बंध। निर्जरा का मतलब जिस प्रकार आम आदि फल पक कर वृक्ष से प़थक हो जाता है उसी प्रकार भला बुरा फल देकर कर्मों का झड़ जाना है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि बंध तो हमेशा होता रहता है लेकिन जिनेन्द्र भगवान की भक्ति करते समय ऐसी प़कृतिओ का बंध होता है जो बंध को काटने में भी सहायक होती है।