प्रतिस्पर्धा
प्रश्न : – मारीच आदिनाथ भगवान से नाराज़ था तो उनके समवसरण में क्यों जाता था ?
उत्तर :- यह देखने जाता था कि समवसरण में क्या-क्या है, ताकि जब मैं अपना समवसरण बनाऊंगा तो इससे भी अच्छा बना सकूं । इनके उपदेश में क्या-क्या कमियां हैं, जिनको बाहर जाकर मैं Highlight कर सकूं ।
पं. रतनलाल बैनाडा जी
क्या हम अपने गुरूओं के पास इस मन: स्थिति से तो नहीं जाते हैं !
8 Responses
Jai jinendra.
At last mareech ka kya hua, could u tell us.
मारीच बहुत जन्मों तक भटकने के बाद ऋद्धिधारी मुनियों के संबोधन से सम्यग्दर्शन प्रगट करके अंततः अंतिम तीर्थंकर महावीर बने ।
कोई भी जीव पुरूषार्थ करके कहीं से कहीं पहुंच सकता है ।
Indriy janit gayan aatma ke sath nahi jata ha to purv janam kaisa hota ha?
प्रश्न पूरा स्पष्ट तो नही है फ़िर भी अपनी समझ से प्रश्न को समझ कर उत्तर देने की कोशिश की जा रही है । –
इन्द्रिय जनित ज्ञान चाहे वो संसारी हो या आध्यात्मिक जब तक वह बुद्धि के स्तर पर रहता है तब तक जीव के साथ नहीं जाता । आध्यात्मिक ज्ञान जो श्रद्धा और चारित्र से आत्मसात कर लिया जाता है, वही साथ जाता है ।
आपका दूसरा प्रश्न कि धर्म और मोक्ष पुरूशार्थ को अलग-अलग क्यों रखा गया है,
इसका जबाब है धर्म पुरूषार्थ संवर और निर्जरा के साथ पुण्य का आस्रव भी करता है, जबकि मोक्ष पुरूषार्थ कर्मों की निर्जरा करके मोक्ष दिलाता है ।
Dharm pursharth moxh pursharth ko alag alag kyo rakha gaya he?
Kisi ne bataya tha ki punya bhi sansar ka karan hai,kaise?
एक अपेक्षा से यह सही है कि पुण्य संसार का कारण है ।
पर पुण्य अटकाता है और पाप भटकाता है, इसलिये भटकन से बचने के लिये अटकना समझदारी है ।
यह भी महत्वपूर्ण है कि संसार छोड़ने के लिये रास्ता पुण्य के गांव से ही जाता है, मोक्ष का फल पुण्य के पेड़ पर ही लगता है ।
आज हमारे पास दो ही विकल्प हैं – पाप और पुण्य । समझदारी इसी में है कि पाप को खत्म करने के लिये हर समय पुण्य क्रियाओं में रहें ।
मुनिव्रत धारण करने पर जब हमारे जीवन से पाप समाप्त हो जायेंगे तब पुण्य की बेड़ियां भी कट जायेंगी ।
very well explained…beautiful..