चारित्र मोहनीय बंध

तीव्र कषाय और नो कषाय, अधिक मोह, रागद्वेष में अति लीनता से तीव्र अनुभाग का बंध होगा ।
तीव्र कषाय – तपस्वियों के चारित्र में दोष, संक्लेषोत्पादक व्रत धारण, धर्म उपहास, बहुत प्रलाप से होती है ।

कर्मकांड़ गाथा : – 803

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