भद्र-मिथ्यादृष्टि
मंद-कषायी मिथ्यादृष्टि को भद्र-मिथ्यादृष्टि कहते हैं । ये सत्य को पाना तो चाहते हैं पर पा नहीं पाते ।
123 जीव यहाँ से विदेह जाकर, उस वातावरण को पाकर/ सत्य ग्रहण करके मोक्ष जायेंगे ।
दूसरे प्रकार को एकांत-मिथ्यादृष्टि कहते हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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भद़–मिथ्यात्व के मंद उदय में जो जीव समीचीन जिन धर्म से द्वैष करते हैं उसे भद़-मिथ्यात्व कहते हैं। कषाय का मतलब आत्मा में होने वाले क़ोधादि रुप कलुषित को कहते हैं। यह भी चार प्रकार के होते हैं,क़ोध मान माया ओर लोभ यह कषाय होती हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि मंद कषायी मिथ्यादृष्टि भी होते हैं। अतः यह लोग सत्य को पाना चाहते हैं लेकिन पा नहीं सकते हैं। इसमें 123 जीव यहां से विदेह जाकर,उस वातावरण को पाकर और सत्य ग़हण करके मोक्ष जावेंगे, दूसरे प़कार को एकांत मिथ्यादृष्टि ही कहते हैं।
“123 जीव” jo “Videha” se moksh jaayenge, kya “Bhadra Mithyadrishti” hain?
यहाँ से जाते समय तथा विदेह-क्षेत्र में जन्म लेते समय
भद्र-मिथ्यादृष्टी होते हैं ।
Okay.