करण और भाव

तीन करण…
मिथ्यादृष्टि के भी होते हैं जब वह सम्यग्दर्शन के सम्मुख खड़ा होता है। तब औदयिक भाव होते हैं।
श्रेणी मांडते समय आदि छह अवसरों पर क्षयोपशमिक-भाव।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

Share this on...

4 Responses

  1. मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने करण एवं भाव को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।

    1. 1. प्रथमोपशम
      2. क्षयोपशम सम्यग्दर्शन
      3. विसंयोजना
      4. द्वितियोपशम
      5. चारित्र मोहनीय उपशम
      6. क्षय करते समय।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

April 30, 2024

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930