Category: चिंतन

धर्म / अध्यात्म

धर्म……….क्रियात्मक (मुख्यता से), अध्यात्म… भावात्मक। लेकिन धर्म की क्रियाओं को भावों के साथ करेंगे तभी भावात्मक अध्यात्म जीवन में आयेगा। चिंतन

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स्पर्शन

कल्पनाओं में दूर देश बैठे प्रियजनों का स्पर्शन अनुभव करके रोज आनंदित होते हैं। गुरुओं/ भगवान (अरहंत, सिद्धों) का क्यों नहीं है ! चिंतन

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प्रण

चाणक्यादि ने प्रण लेते समय चोटी में गाँठ बाँधी। द्रौपदी आदि ने चोटी खोली। उल्टी क्रियायें क्यों ? पुरुषों की चोटी खुली रहती हैं, स्त्रियों

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अकर्ता

जो अपने को अकर्ता मानता है वह विनम्र होता है। कर्ता मानने वाला ही अकड़ता है। चिंतन

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गुण खिलाना

हृदयांगन में सुगंधित गुण रूपी फूल खिलने पर, आँगन सुंदरता/ सुगंधी से तो भर ही जाता है तथा सत्संगी रूपी तितलियाँ भी मंडराने लगती हैं,

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Theory of “Something”

प्राय: हम उन चीजों का विवरण बहुत विस्तार में देते हैं जिनमें सामने वाले को कोई रुचि नहीं होती/ वह जानना भी नहीं चाहता जैसे

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सोच के भेद

1. सामान्य…बुरे को बुरा माने 2. मध्यम… अच्छे को अच्छा 3. निकृष्ट… अच्छे को बुरा 4. साधु…. बुरे को भी बुरा न माने चिंतन

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धर्म

दया/ क्षमा धर्म कैसे ? धर्म की अंतिम परिभाषा –> वस्तु का स्वभाव ही धर्म है। दया/ क्षमा आत्मा का स्वभाव है, इस अपेक्षा से

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विनय / अविनय

विनय करने को कहा, तो ‘अविनय नहीं करना’, कहने की क्या आवश्यकता थी ? सद्गुणों की विनय करें, किंतु कमजोरीयों की अविनय भी नहीं करें।

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अभिनय

1. सरल –> सामान्य/ अज्ञानी/ रागी गृहस्थ करता है पर दुःख का कारण। 2. कृत्रिम –> नाटक में… ज्ञानी/ समझदार करता है, सब संतुष्ट। जब

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मंगल आशीष

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