Category: संस्मरण-आचार्य श्री विद्यासागर
दान
आचार्य श्री विद्यासागर जी के पास एक संभ्रांत व्यक्ति आये। बोले –> मेरे पास अपार धन है पर दान देने के भाव नहीं होते। आचार्य
सहन शक्ति
एक बार परम पूज्य मुनि गुरुवर श्री क्षमासागर महाराज जी की अस्वस्थ अवस्था में किसी ने पूछा कि आप इतनी वेदना कैसे सहन कर लेते
आनंद
जिसे दुबारा करने/पाने/देखने/सुनने का मन करे, वह आनंद की क्रिया है। सन् 1983 में आचार्य श्री विद्यासागर जी संघ सहित लम्बा विहार करके शाम को
त्याग
आचार्य श्री विद्यासागर जी आहार देने वाले से कुछ त्याग नहीं कराते। एक वकील ने आहार दिया, जो त्याग करने से डरता था। बाद में
भावना
मुनि श्री महासागर आदि 25 ब्रह्मचारियों की दीक्षा बहुत दिनों से रुकी हुई थी । वह सब आचार्य श्री विद्यासागर जी के पास गए, निवेदन
प्रतिक्रिया
आचार्य श्री विद्यासागर जी के विरुद्ध किसी ने पुस्तक छपवा दी। मुझे (महाराज जी) बहुत बुरा लगा। आचार्य श्री से आशीर्वाद मंगवाया जबाब देने के
वेदना की अनदेखी
कड़क सर्दी में आचार्य श्री विद्यासागर जी सहजता से सारी क्रियायें करते हैं । पूछने पर श्री धवला जी की गाथा सुनाते हैं – “वेदना
भक्त्ति
सागर आते समय एक वृद्धा आचार्य श्री विद्यासागर जी के पैर धोने लुटिया में जल लेकर भीड़ में से निकलकर आचार्य श्री की ओर बढ़ी
विनय
आचार्य श्री विद्यासागर जी का स्वास्थ अच्छा नहीं था । मुनिजन वैय्यावृत्ति कर रहे थे । आचार्य श्री दीवार से पीठ टिकाये बैठे थे ।
विशुद्धता का प्रभाव
आचार्य श्री विद्यासागर जी का बुखार उपचार करने पर भी कई दिनों से उतर नहीं रहा था । उनके गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने
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