Category: 2017

आबाधा

दो प्रकार – 1. उदय की अपेक्षा – आयुकर्म को छोड़कर बाकी 7 कर्मों की 1 कोड़ा कोड़ी सागर पर 100 बर्ष । 2. उदीरणा

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विपुलमति ज्ञान

विपुल यानि बड़ा । श्रेणी चढ़ने पर नीचे नहीं आते, 6, 7 गुणस्थान में ऊपर नीचे हो सकते हैं पर 6, 7 में दुबारा आने

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मोहनीय की शक्ति

धर्म-ध्यान से मोहनीय कर्म का क्षय दसवें गुणस्थान तक हो जाता है तो ज्ञानावरण आदि कर्मों का क्षय क्यों नहीं होता है ? आचार्य श्री

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अजीवादि का ज्ञान

जीव, संवरादि का ज्ञान करना तो सही है पर अजीव, आश्रवादि का क्यों ? आचार्य शांतिसागर जी – संवरादि तो रत्न हैं जो आश्रवादि रेत

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सामान्य केवली

इनकी शुभ वर्गणाओं का अनुभाग उत्कृष्ट/तीर्थंकरों जैसा ही होता है । क्षपक श्रेणी चढ़ते समय सबका अनुभाग उत्कृष्ट हो जाता है । पं. रतनलाल बैनाड़ा

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कर्म उदय

सविपाक निर्जरा में आबाधा के बाद, पहले निषेक में बहुत कर्म परमाणु खिरते हैं, फिर कम होते जाते हैं । अविपाक में एक साथ बहुत

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उपशम भाव

चौथे गुणस्थान में उपशम सम्यग्दर्शन होने पर सम्यक्त्व के क्षेत्र में औपशमिक भाव होते हैं, पर आठवें गुणस्थान से औपशमिक चारित्र आने पर औपशमिक भाव

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ज्ञान

मति, श्रुत ज्ञान – रूपी हैं, पर विषय रूपी अरूपी, अवधि, मन:पर्यय – अरूपी हैं, पर विषय रूपी ही, केवलज्ञान – अरूपी है, पर विषय

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चारित्र

चौथे गुणस्थान में सम्यक्त्वाचरण चारित्र, इस अपेक्षा से कहा क्योंकि उसमें दुराचरण नहीं है । वैसे चारित्र तो 5, 6 गुणस्थान से ही शुरू होता

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रिद्धि

गणधरों को दीप्ति रिद्धि तब काम आती है जब भगवान का निर्वाण हो जाता है । समवसरण में तो भूख साधारणजन को भी नहीं लगती

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मंगल आशीष

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