Category: 2017

क्षपक श्रेणी

इसे माढ़ते समय अनुभाग – पुण्य प्रकृतियों का उत्कृष्ट तथा पाप प्रकृतियों का कम; स्थिति – पाप प्रकृतियों की कम तथा पुण्य प्रकृतियों की भी

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केवलज्ञान में ज्ञान/दर्शन

केवलज्ञानी के केवल ज्ञान व दर्शन युगपद कैसे ? भगवान के अनंतवीर्य का उदय रहता है, इसीलिये उनको दर्शन और ज्ञान के बीच अंतराल की

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रत्नत्रय

सम्यग्दर्शन – पाप को पाप जानना । सम्यग्ज्ञान – पाप को पाप मानना । सम्यकचारित्र – पाप को पाप मानकर छोड़ना ।

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म्लेच्छ

म्लेच्छ-खंड़ से आयीं पत्नियों की संतान 6-7 गुणस्थान तक ही जाती हैं, क्योंकि ये क्षेत्र-म्लेच्छ होते हैं।

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दस प्राण

10 प्राणों में सिर्फ 3 में (मन, वचन, काय) “बल” क्यों लगाया ? ये तीन सबसे बलवान हैं इनसे ही कर्म बंधते हैं बाकी तो

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संक्रमण/विसंयोजना

संक्रमण किसी भी गुणस्थान में, विसंयोजना 4 से 7वें गुणस्थान में । संक्रमण Reverse Back नहीं, विसंयोजना में गुणस्थान गिरने पर Reverse Back होता है

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शुद्धानुभव

अशुद्धता में रहकर शुद्धत्व का ध्यान/प्राप्ति की भावना भायी जा सकती है, उसका अनुभव नहीं किया जा सकता ।

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गुण

गुण से गुणांतर ही परिणमन है, जैसे आम का हरे से पीला होना । पर गुणों में परिणमन नहीं माना है, इस अपेक्षा से कि

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मिथ्यात्व से आरोहण

मोहनीय कर्म की 28 प्रकृतियों की सत्व वाला सादि मिथ्यादृष्टि मिथ्यात्व से 3, 4, 5, व 7 गुणस्थान को जा सकता है, पर अनादि मिथ्यादृष्टि

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मंगल आशीष

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