Category: 2017
दर्शनावरण/ज्ञानावरण
दर्शनावरण को द्वारपाल का तथा ज्ञानावरण को पर्दे का उदाहरण इसीलिये दिया गया है क्योंकि पहले द्वारपाल रोकता है (दर्शन भी पहले) फ़िर अंदर पहुँचने
केवली के कर्म क्षय
63 प्रकृतियों का नाश करके केवलज्ञान (47 घातिया + 3 आयु + 13 नामकर्म) । प्रश्न : 3 आयु थीं, जिनका नाश किया ? नहीं,
दर्शन/सम्यग्दर्शन
दर्शन – दर्शनावरण के क्षयोपशम से, सम्यग्दर्शन – दर्शन मोहनीय के क्षय/उपशम/क्षयोपशम से । दर्शन – सामान्य देखना, सम्यग्दर्शन – सच्चा देखना । पाठशाला
जीवत्व
पारिणामिक भाव है । यहाँ जीवत्व को ज्ञान चेतना माना, अत: सिद्धों में 9 क्षायिक + 1 जीवत्व = 10 भाव माने हैं । पर
पुदगल के गुण
चार गुणों में “वर्ण” क्यों कहा, आकार क्यों नहीं ? आकार तो सब द्रव्यों में कहा जा सकता है, पर वर्ण पुदगल में ही होता
मिथ्यात्व
मिथ्यात्व बंध में कारण नहीं, अधिकरण है । बंध में कारण तो दो ही होते हैं – कषाय और योग । (भेद 4 हैं, जिनमें
कषाय
कोई कषाय एक मुहूर्त तक नहीं रहती । तथा संज्वलन को छोड़कर बाकी तीनों मुहूर्त से ज्यादा समय के लिये होती हैं । दोनों कथन
सुख/दु:ख
अनुभागानुसार ही जीव के सुख दु:ख में हीनाधिकता होती है । जैसे देवगति में पुण्य प्रकृति समान होने पर भी कोई वाहन (संक्लेश परिणाम), उस
कुल/जाति
योनियों की विविधता – जाति शरीर के योग्य वर्गणाओं की विविधता – कुल (24 ठाणा)
प्रभाव
परिणामों के प्रभाव से निर्जीव कर्मवर्गणाऐं भी शुभ/अशुभ हो जाती हैं ।
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