Category: 2020

मिथ्यात्व

दो प्रकार का मिथ्यात्व- 1) नैसर्गिक – स्वभाविक रूप से,कर्मोदय से, अगृहीत। 1 से 5 इन्द्रिय जीवों में। 2) अधिगम – उपदेश से, संज्ञी जीवों

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नोकर्म

शरीर को नोकर्म कहते हैं, नोकर्म, कर्म की तरह राग-द्वेष में कारण हैं । शरीर-नामकर्म, 8 कर्मों में ही आते हैं । पं.रतनलाल बैनाड़ा जी

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गृहीत-मिथ्यात्व

गृहीत-मिथ्यात्व सिर्फ भरत/ऐरावत क्षेत्रों के मनुष्यों के ही और हुंडावसर्पिणी में ही होता है । मुनि श्री सुधासागर जी

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अनंतानुबंधी

दूसरे का नुकसान करने के लिये, अपना नुकसान सहने को तैयार । जैसे मैं मरूँ या ज़ीऊँ, दुश्मन को मिटाकर रहूँगा । मुनि श्री सुधासागर

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नामकर्म

शरीर के निर्माण में नामकर्म-वर्गणायें खुद शरीर नहीं बनातीं, वे शरीर निर्माण योग्य के योग्य वर्गणाओं को आकर्षित करतीं हैं, तब उनसे शरीर का निर्माण

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काल के प्रदेश

एक प्रदेशी “काल” को, अप्रदेशी भी कहा है; क्योंकि… 1. काल कभी बहुप्रदेशी नहीं बन सकता है । 2. “एक” का महत्व नहीं जैसे एक

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बंध / निर्ज़रा

बंध तो हमेशा होता ही रहता है, लेकिन जिनेंद्र भगवान की भक्ति करते समय ऐसी प्रकृतिओं का बंध होता है, जो बंध को काटने में

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कृत-कृत वेदक

कृत-कृत वेदक उसे कहते हैं जिसने मिथ्यात्व और सम्यक् मिथ्यात्व का क्षय कर लिया हो और सम्यक् प्रकृति के बहुभाग का भी क्षय कर लिया

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शरीर-नाम कर्म

13वें गुणस्थान के अंत में शरीर के आत्मप्रदेश किंचित कम हो जाते हैं , क्योंकि 14वें गुणस्थान में तो शरीर-नामकर्म का उदय ही नहीं है

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विसंयोजना

अनंतानुबंधी को सत्ता से समाप्त करना विसंयोजना है । उपशम तथा क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि के भी अनंतानुबंधी उदय में तो नहीं, पर सत्ता* में रहती है

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मंगल आशीष

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