मिथ्यात्व

दो प्रकार का मिथ्यात्व-
1) नैसर्गिक – स्वभाविक रूप से,कर्मोदय से, अगृहीत।
1 से 5 इन्द्रिय जीवों में।
2) अधिगम – उपदेश से, संज्ञी जीवों के, निमित्त मिलने पर विशेष रूप से मनुष्यों में, 363 मत फैल रहे हैं।
संज्ञी ही सीखता/ सिखाता है।
इसलिये मनुष्य को गृहीत मिथ्यात्व पहले छोड़ना महत्त्वपूर्ण है।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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One Response

  1. मिथ्यात्व का तात्पर्य आगम द्वारा बताए गए सिद्धांत पर नही चलना होता है।
    अतः मुनि श्री का कथन सत्य है। मनुष्य को गृहीत मिथ्यात्व पहिले छोड़ना महत्वपूर्ण है।मिथ्यात्व से जीवन का कल्याण नहीं हो सकता है। अतः जीवन में सात तत्वों का पालन करना अनिवार्य है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।

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