अनंतानुबंधी
दूसरे का नुकसान करने के लिये, अपना नुकसान सहने को तैयार ।
जैसे मैं मरूँ या ज़ीऊँ, दुश्मन को मिटाकर रहूँगा ।
मुनि श्री सुधासागर जी
दूसरे का नुकसान करने के लिये, अपना नुकसान सहने को तैयार ।
जैसे मैं मरूँ या ज़ीऊँ, दुश्मन को मिटाकर रहूँगा ।
मुनि श्री सुधासागर जी