Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
आहार
आहार लिये बिना, आत्मा में विहार हो नहीं सकता। आचार्य श्री विद्यासागर जी
अतीत/ वर्तमान/ भविष्य
अतीत में जीना मोह है, वर्तमान में जीना कर्मयोग है, भविष्य में जीना लोभ है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
चिकित्सा
रोगी को निर्भय और सकारात्मक करना ही सबसे बड़ी चिकित्सा है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
अनुभव
हमेशा अपने अनुभव से काम करें, क्योंकि 50 ग्रंथों का सार… स्वयं का अनुभव ही है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
व्रतियों की बढ़ती संख्या
व्रतियों की बढ़ती संख्या देखकर ऐसा नहीं लगता कि ब्रह्मचारियों/ब्रह्मचारिणीयों की भीड़ बढ़ती जा रही है ? आचार्य श्री – “अन्यथा शरणं नास्ति” ऐसा सोचकर
शिक्षा-सूत्र
शिष्यों को – यदि कल्याण करना चाहते हो तो मात्र दो चीजें करना – 1. स्वयं तो गलती करना नहीं। 2. दूसरों की देखना नहीं।
हिसाब-किताब
मरना है तो मर जा, पर जीते जी कुछ कर जा, अन्यथा कर्जा तो मत ले कर जा। आचार्य श्री विद्यासागर जी (जितने कर्म लेकर
वक्त पर काम
“वक्त पर बोये ज्वार मोती बनें” । एक गरीब ज्योतिषी ने विलक्षण मुहूर्त देखा, जिसमें अनाज हवन में डालने पर वे मोती बन जाएंगे। पर
धन और सदुपयोग
धन की प्राप्ति पुण्य के फल से, धन को सदुपयोग में लगाना तप के फल से। (इच्छानुरोध से ही सदुपयोग कर पाते हैं, यही तो
शिक्षा
शिक्षा वह, जिसके द्वारा हित (परिवार/समाज/देश/धर्म तथा आत्मा का) का सृजन तथा अहित का विसर्जन हो। आचार्य श्री विद्यासागर जी
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