Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
साधना/आराधना
मोक्षमार्ग दो ही हैं । 1. साधना 2. आराधना जब तक साधना नहीं कर पा रहे हो, तब तक आराधना तो करो । आचार्य श्री
साधु/व्रती-पद
साधु/ व्रती सदैव याद रखें >> दीक्षा अपने बल/भरोसे पर ली जाती है, औरों/समाज के बल पर नहीं। व्रती को अपने व्रतों के नियंत्रण में
मन
मुनि श्री प्रमाणसागर ने किसी विषय पर आचार्यश्री से कहा – “ये मन को अच्छा नहीं लग रहा” आचार्यश्री – मैने दीक्षा आत्मा को अच्छा
वासना
वासना का सम्बंध न तन से है न वसन* से, अपितु माया से प्रभावित मन से है । आचार्य श्री विद्यासागर जी * पोशाक
जज / वकील
जज सुनते ज्यादा हैं, बोलते कम, भेद-विज्ञान लगाकर सत्य पकड़ते हैं । फांसी का निर्णय देने के बाद कलम तोड़ देते हैं – अहिंसा का
आत्मा
आत्मा को भार* नहीं, आभार** मानो । * भार मानने वाले आत्मघात तक कर लेते हैं । ** कितना उपकार कि आत्मा हमें मोक्ष-मार्ग पर
संस्कार
दही के बर्तन में बिना जामुन के दूध ऐसा जम जाता है कि जमा (जमाना) उल्टा कर दो तो भी ना गिरे । आचार्य श्री
श्रमण / श्रावक
बिना संयम के काले बाल वालों पर भरोसा मत करना ; Army area में Civilian का जाना वर्जित होता है । श्रावकों की सुनो मत/मानो
परिस्थितियाँ
परिस्थितियों से नहीं, परिणामों से डरो, परिस्थितियाँ तो थोड़े समय के लिये निर्मित होती हैं, परिणाम स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
चित्र
चित्र के साथ जब “वित्त”* जुड़ जाता है तब वह चित्र, विचित्र बन जाता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी * जब चित्र(कला) से पैसा
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