Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर

शत्रु / मित्र

जिनसे मेरे कर्म कटें वे मेरे शत्रु कैसे ! जिनसे मेरे कर्म बंधे वे मेरे मित्र कैसे !! आचार्य श्री विद्यासागर जी

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विषय

संसार में अगली अगली कक्षाओं में ज्ञान तो बढ़ता जाता है पर विषय (विषय भोग) गहरे होते जाते हैं । धर्म में ज्ञान बढ़े या

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Birth / Death

सूरज के उगने/अस्त होने को Sun का Birth/Death नहीं कहते बल्कि Sun-Rise/Set कहते हैं। आत्मा के आने और जाने को Rise/Set क्यों नहीं ! उसको

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हाइकू

किसान तीन टांग वाले स्टैंड पर खड़ा होकर अनाज से भूसा अलग करता है। ऐसे ही तीन पदों के हाइकू से फ़ालतू शब्द छँट जाते

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संयम

पेट लैटर-बौक्स नहीं है, कि पोस्टकार्ड, लिफ़ाफ़े कुछ भी डालते रहो; जब मर्ज़ी आये तब, कितने भी डालते रहो। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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जमीन से जुड़ना

अंकुर बड़े-बड़े तूफानों में भी नहीं हिलता क्योंकि जमीन से जुड़ा रहता है। बड़े-बड़े वृक्ष छोटे-छोटे तूफानों में हिल जाते हैं/गिर जाते हैं क्योंकि वे

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संस्कार

बच्चों को बड़ों से शिकायत रहती है। होनी भी चाहिये; तभी तो बड़े बच्चों से शिकायत कर सकेंगे। पहले राजा तक अपने बच्चों को सुविधाओं

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सही क्या ?

1. आंखें न मूदो! 2. न ही दिखाओ! 3. सही क्या, देखो! आचार्य श्री विद्यासागर जी 1. स्वयं के प्रति 2. स्वजनों के प्रति 3.

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सपना

दिन का हो या रात का, सपना सपना होय; सपना अपना सा लगे, किन्तु न अपना होय। आचार्य श्री विद्यासागर जी दिन के सपने मोह

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मंगल आशीष

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