Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
काया
काया का कायल नहीं, काया में हूँ आज । कैसे काया-कल्प हो, ऐसा हो कुछ काज ।। आचार्य श्री विद्यासागर जी (हम तो आज चाय
घनिष्टता
छोटा सा कंकड़ भी पानी में डूब जाता है, बड़ा भारी खंबा नहीं, क्योंकि कंकड़ की घनिष्टता ज्यादा होती है । पैसा थोड़ा हो, घनिष्टता
जीना
जीना है तो जीना चढ़ जाओ, वरना जीना छोड़ दो । आचार्य श्री विद्यासागर जी
कर्म-फल
फल एक बार ही स्वाद (खट्टा या मीठा) देता है, कर्म भी एक बार फल देकर झर जाते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
पहचान
अपने आप को 3 प्रकार से पहचाना जा सकता है । 1. परछायीं देखकर, पर इसमें नाक/कान आदि नहीं दिखते जैसे परदेश की सीमा पर
विनय
सब विनयों में, उपचार-विनय (शिष्टाचार में) Practical है । इसमें 100% नम्बर सहजता से ला सकते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
स्मरण तथा पुण्यार्जन
स्मरण तथा पुण्यार्जन के लिये भुला-भुला कर पढ़ना चाहिये । आचार्य श्री विद्यासागर जी
भारत
भारत में वह है जो विश्व में कहीं नहीं । बाहर की भौतिकता को देखकर आँखें खुली रह जाती हैं, भारत में आकर आँखें बंद
गुण / दोष
दूसरों के अवगणों को नहीं देखना ही, अपने भीतर के अवगुणों को फ़ेंक देना है; और दूसरों के गुणों को देखना ही, एक प्रकार से
पथ्य और औषधि
आयुर्वेद का सूत्र … पथ्य है तो औषधि की आवश्यकता नहीं, और यदि पथ्य नहीं है तो भी औषधि की आवश्यकता नहीं । पूत कपूत
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