Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
बोलना / सुनना
विकलेंद्रिय (2 से 4 इंद्रिय) वाले (बिना कान के कीड़े) बोलते रहते हैं, सुनते नहीं हैं । यदि हम भी बोलते अधिक हैं, सुनते कम
जीव रक्षा
जीव रक्षा क्यों, आत्मा तो कभी मरती नहीं ? ताकि मनुष्यादि अपना आत्मकल्याण करके दु:खों से मुक्ति पा सकें । पर कीड़े-मकोड़े/पेड़-पौधे तो आत्मा को
संम्प्रेषण
आप शिष्यों को अपने से इतनी दूर भेज देते हैं, उनसे संम्प्रेषण कैसे होता है ? बिजली का खंभा कितनी भी दूर हो पर Connection*
आलोचना
आलोचना से लोचन खुलते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी इसलिये आलोचना का स्वागत करो (स्व+आगत)(अच्छे से बुलाना – पं.रतनलाल बैनाडा जी), स्व का हितकारी/प्रिय
आसन
असन* करना है तो आसन करो (शरीर को एक अवस्था में स्थिर रखना)। आचार्य श्री विद्यासागर जी *धर्म साधना
माला फेरना
भगवान के नाम की माला फेरने से फायदा ? आ. श्री विद्यासागर जी – जैसे आयुर्वेदिक दवा को बार बार घौटने से उसकी क्षमता (रोग
पुण्य / पाप
मुठ्ठी बांधे आते हैं (पुण्य लेकर; मनुष्य ही) हाथ पसारे जाते हैं (पुण्य खर्च करके), फिर भी वैभव को मुठ्ठी में बांधे रखने की कोशिश
क्रोध
निमित्त मिलने पर, नैमित्तिक-भावों से क्रोध आता है ; ये निमित्त बाह्य या अंतरंग भी हो सकते हैं । 2) क्रोध अज्ञानी को ही आता
अज्ञान
ज्ञान नहीं होना, अज्ञान नहीं; विपरीत ज्ञान ही अज्ञान है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
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