Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर

आपदा

हम सही से जीते रहें, तो आपदायें आसानी से जीती जा सकती हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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भक्ति / तप

जिनको तप से डर लगता है वे कम से कम भक्ति करके अपने कल्याण की शुरुआत करें । फिर तप की क्या ज़रूरत ? काढ़े

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बेजोड़

एक जुट हों, एक से जुड़ें नहीं, बेजोड़* बनें । आचार्य श्री विद्यासागर जी * अपूर्व/अखंड/बिना जोड़/मतभेद रहित

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गोचरी-वृत्ति

गोचरी-वृत्ति याने जैसे गाय नीचे मुँह करके/बिना इधर उधर देखे अपना भोजन करती रहती है । ऐसे ही साधु-प्रवृत्ति वाले भी अपने काम से काम

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ज्ञान / ध्यान

समीचीन उद्देश्य बनाने के लिये ज्ञान की आवश्यकता है, पर उसे पूर्ण करने के लिये ध्यान की । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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ज्ञान

वेद तो बहुत पढ़ लेते हैं, वेदना पढ़ सकें तो महत्वपूर्ण है । आ. श्री विद्यासागर जी

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चमत्कार

चमत्कार से चमत्कृत न हों, सबसे बड़ा चमत्कार, नमस्कार से घटित होता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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सतयुग / कलयुग

जहाँ बुरा बूरा लगे, वहाँ सतयुग, जहाँ खरा अखरे ,वहाँ कलयुग ! आचार्य श्री विद्यासागर जी

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निमित्त

तुमसे मेरे कर्म कटे, मुझसे तुमको क्या मिला ? आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मंगल आशीष

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