Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
सत्य
सत्य खोजा नहीं जा सकता, खोया जा सकता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
गुरु
गुरु ने मुझे क्या ना “दिया”, हाथ में “दिया” दे “दिया” । आचार्य श्री विद्यासागर जी
व्यवस्था
जितनी व्यवस्थाएँ होंगी, उतनी ही अव्यवस्थाएँ भी होंगी और आपकी अवस्था बदल नहीं पायेगी । आचार्य श्री विद्यासागर जी
गुरु
गुरु ने मुझे क्या ना दिया ! हाथ में “दीया” दे दिया !! आचार्य श्री विद्यासागर जी
भाव
दुकानदार माल से मालदार नहीं, भावों से मालदार बनता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
दीपावली
हमेशा होली (राग द्वेष की कीचड़) रही है, एक बार दिवाली (ज्ञान का प्रकाश) आ जाये , तो होली आयेगी ही नहीं/ होली हो ली
ब्रम्हचर्य धर्म
आत्मा में रमना ही सच्चा ब्रम्हचर्य है । प्रवचन पर्व (आ.श्री विद्या सा.जी) 2) बेटे और पति के शरीरों पर हाथ रखने से जब एकसा
तप धर्म
इच्छा का निरोध ही तप है । या अपेक्षा निरोध: तप: । आचार्य श्री विद्यासागर जी
अच्छा
मन की आवाज़ अच्छी लगती है, पर बुरा बनाती है । अंतरंग की आवाज़ बुरी लगती है, पर अच्छा बनाती है । मन की मनमानी
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