Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर

ध्यान

संयत ज्ञान ही ध्यान है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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ज्ञान/धर्म

ज्ञान धर्म के लिये है, धर्म ज्ञान के लिये नहीं । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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पापबंध

पुण्य के फल को भोगना ही पापबंध है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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तप

गृहस्थों के दो ही दुश्मन होते हैं – राग और द्वेष साधुओं का एक ही दुश्मन होता है – राग बाई जी

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भक्ति/मन

मन लगाने के लिये सामूहिक क्रियायें करें, भक्ति अकेले में सबसे अच्छी होती है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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साधक

साधक तो प्रभावक होगा ही, पर प्रभावक बाधक भी हो सकता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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उत्तम ब्रम्हचर्य

आत्म कल्याण के लिये पांचों इन्दियों के विषयों/पापों को छोड़ना उत्तम ब्रम्हचर्य है। आचार्य श्री विद्यासागर जी ब्रम्हचर्य के लिये इष्ट, गरिष्ठ, अनिष्ट आहार ना लेने

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तप

समुद्र का खारा पानी पीने योग्य नहीं, जब तपता है तब मीठा बनकर जीवन में बहार ला देता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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जीना

अतीत में जीना मोह है, भविष्य में जीना लोभ है और वर्तमान में जीना कर्मयोग है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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ज्ञान

ज्ञान इतना उपयोगी नहीं, ज्ञान होने से जो जीवन में सावधानी/विवेक आता है, वह उपयोगी है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मंगल आशीष

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