Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर

सावधानी

रेडियो पर धार्मिक चर्चा सुनते सुनते यदि असावधानीवश सुई जरा सी हिल गयी तो Disturbance आने लगता है । धार्मिक क्रियायें करते समय जरा सी

Read More »

अभिमान

जो मानता स्वंय को सबसे बड़ा है, वह धर्म से अभी बहुत दूर खड़ा है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

Read More »

प्रारंभ

एक कदम चलने वाला भी हजारों मील चल लेता है, कहीं से चलें तो सही ( प्रारंभ तो करें ) | आचार्य श्री विद्यासागर जी

Read More »

मोह

मोह पुण्य को पाप में परिवर्तित कर देता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी (पुण्य से जो पुत्र आदि मिले हैं, उनसे मोह करके पाप

Read More »

शब्द/भाव

शब्दों में वज़न होता है, भाव उनमें जान ड़ालते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी

Read More »

धन अर्जन

धन अर्जन, धर्म के साथ किया जा सकता है, पर धन का सदुपयोग तप है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

Read More »

पापबंध

पुण्य के फल को भोगना ही पापबंध है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

Read More »

पूजापाठ

दुकान खोलते हैं ताकि ग्राहक ज्यादा आयें/फायदा ज्यादा हो । पूजापाठ क्यों करते हैं ? भगवान बनने के लिये या श्रीमान बनने के लिये ?

Read More »

धर्मात्मा

जो मंदिर हंसते हुये जाता है, और रोते हुये मंदिर से लौटता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

Read More »

परीक्षा

परीक्षा तो खुद ही देनी होगी, चाहे परीक्षा देते देते पसीना क्यों ना आ जाये । परीक्षा में सफ़लता पाने पर कुलपति/राष्ट्रपति आपको सम्मानित करने

Read More »

मंगल आशीष

Archives

Archives

July 30, 2012

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930