Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर
नयन
नयन यानि ‘नय + न’, यानि नयों के परे। शांत, निर्विकल्प तथा सरल दृष्टि वाले ही ‘नयन’ होते हैं । (बाकि सब तो सिर्फ दिखने
वैराग्य
वैराग्य की बात करना और वैराग्य से बात करने में बहुत अंतर है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
स्वाधीनता
स्वाधीन होना, यानि अपने ही आधीन होना । आचार्य श्री विद्यासागर जी
पत्नी
शास्त्रों के अनुसार पत्नी अनुगामिनी होती है, पर आजकल तो देखा जाता है कि पति पत्नी को Follow करते हैं, ऐसा क्यों ? क्योंकि आजकल
दान
वृक्ष बार बार फल देते हैं, दान भी बार बार देना चाहिये, जो व्यवहार है । व्यवहार बताता है, निश्चय गूंगा होता है । आचार्य
गुरू
मार्ग पर चलते समय यदि कोई बोलने वाला मिल जाये, तो रास्ता सरल हो जाता है । और यदि रास्ता बताने वाला मिल जाये, तो
उत्तम ब्रम्हचर्य
पांचों इंद्रियों के विषयों से विरक्त होने का नाम ही उत्तम ब्रम्हचर्य है । आचार्य श्री विद्यासागर जी मस्तिष्क माचिस की डिब्बी है, घिसने से
ज़बाब
जो दूसरों को ज़बाब नहीं देता, वह लाज़बाब है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
लाज़बाब
जो दूसरे को ज़बाब नहीं देता. वह लाज़बाब है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
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