Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर

साधना/आराधना

मोक्षमार्ग दो ही हैं । 1. साधना 2. आराधना जब तक साधना नहीं कर पा रहे हो, तब तक आराधना तो करो । आचार्य श्री

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अधूरी विद्या

यदि विद्या पूर्ण रूप से हासिल नहीं की, तो काम नहीं चलेगा ; जैसे अभिमन्यु अधूरी विद्या  से मारा गया । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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संकल्प/विकल्प

संकल्प करें, विकल्प ना रखें । आचार्य श्री विद्यासागर जी ( संकल्प में भी विकल्प ना करें )

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अपराध

आत्मा की आराधना छोड़ना अपराध है, अपराध तभी होते हैं जब पंचेन्द्रियों के विषयों में लिप्तता अधिक हो जाती है । आचार्य श्री विद्यासागर जी

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आज्ञा

भगवान कभी आज्ञा नहीं देते, वे सिर्फ बताते हैं । इसमें आज्ञा भंग होने का ड़र भी नहीं रहता । आज्ञा देना आसान है, मनवाना

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मोक्ष मार्ग

कृषि, घास (संसार का वैभव) पैदा करने के लिये नहीं की जाती, घास तो Main फसल (मोक्ष मार्ग साधना) के साथ स्वतः ही प्राप्त हो

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धर्म

( संसार के साथ साथ ) धर्म को भी बसाओ, बिसारो मत वरना अपने आप को पहचान नहीं पाओगे ।

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गुरू

हवा ( गुरू ) के झोंके से भूसा ( विकार ) उड़ जाता है ।

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ज्ञायक

ज्ञायक बन गायक नहीं, पाना है विश्राम; लायक बन नायक नहीं, जाना है शिवधाम। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मंगल आशीष

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