Category: 2014
गुण/धर्म
वस्तु में गुण भी, धर्म भी होते हैं । गुण स्वभावभूत हैं,परनिरपेक्ष है । धर्म परसापेक्ष, सद्भाव जीव में है पर ज्ञानादि के समान ये
अकाल मरण
पंड़ित जी – निश्चयनय से तो अकाल मरण होता ही नहीं है । आचार्य श्री – निश्चयनय से तो मरण ही नहीं होता है, अकाल
मोहनीय कर्म
जब 10 वें गुणस्थान के अंत में इसका अंत हो जाता है, तो 12 वें में अनंतसुख प्रकट क्यों नहीं होता ? अनंतसुख भोगने के
अनंत/अव्याबाध सुख
अरिहंत भगवान के अनंत सुख तो है पर अव्याबाध सुख नहीं है, क्योंकि उनके अभी वेदनीय कर्म का उदय है, पर अव्याबाध सुख सिद्धों के
योग
श्री धवला जी के अनुसार – योग पारिणामिक भावों से होते हैं। अन्य आचार्यों के अनुसार औदयिक व क्षयोपशमिक भावों से भी। समग्र- 4/21
आहारक शरीर
“…..चाहारकं…..” में “च” का अर्थ है – पूर्व सूत्र का लब्धि प्रत्ययं, याने आहारक शरीर भी लब्धि से प्राप्त होता है। यह अपने आप नहीं
अनुभाग
आयुबंध से तो मनुष्य आदि बनते हैं । पंचम/छ्ठे काल में, भारत/अफ्रीका में, गर्मज/सम्मूर्छन जन्म अनुभाग निर्धारित करता है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
आश्रवबंध
क्या भावाश्रव/द्रव्याश्रव, भावबंध/द्रव्यबंध अलग अलग समयों में होंगे ? नहीं, वरना 10 वे गुणस्थान के अंत में कषाय सहित किया गया आश्रव 11, 12वे गुणस्थान
सम्यक्त्व
क्षायिक सम्यक्त्व – वीतराग सम्यक्त्व है, शेष दो सराग सम्यक्त्व हैं । अमितगति श्रावकाचार शुभोपयोगी चार से सात गुणस्थान में व्यवहार/सराग सम्यक्त्वी, शुद्धोपयोगी सात से
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