Category: वचनामृत-आचार्य श्री विद्यासागर

मिथ्यात्व पर श्रद्धान

यदि यह श्रद्धान पक्का हो जाय कि संसार का कारण मिथ्यात्व है तो यह सम्यग्दर्शन उत्पन्न करने में निमित्त बन सकता है। आचार्य श्री विद्यासागर

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बोलना

कविता में अनुशासन होता है; शब्दों का Repetition न होने आदि का। इसीलिये उसे बार-बार सुनने का मन होता है, सुहावनी होती है। गद्य में

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विद्या

विद्या को बांटा नहीं जाता बल्कि योग्य व्यक्ति को खोजकर दी जाती है। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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महत्वपूर्ण दिवस

दो दिन जिंदगी के सबसे महत्वपूर्ण होते हैं – एक जब आप पैदा होते हैं और दूसरा जब आप जानते हैं कि क्यों? आचार्य श्री

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संयास

दर्पण कभी न रोया हो न हंसा ऐसा संयास। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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निरोग के उपाय

आँखों का बंधन, पैरों का मर्दन, पेट के लंगन का यदि उल्लंघन किया तो निरोग कैसे रहोगे ! आचार्य श्री विद्यासागर जी

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क्षमा

ग़लतियाँ भी मान्य क्योंकि उनके साथ क्षमा मांगना/ प्रदान करना जुड़ा रहता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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गुरु

गुरु के प्रति समपर्ण/ अर्पण* करने पर वे दर्पण बन जाते हैं, जीवन पर्यंत के लिये। उनके जीवनकाल में ही नहीं, उनके न रहने पर

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वचन

दावतों में Costly Items परोसने के लिये कहा जाता है → ढीले हाथ से मत परोसना। शब्द भी बहुत कीमती हैं, उन्हें ढीले हाथ(लापरवाही/ खुले

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धर्म

श्रावकों (गृहस्थ) का धर्म नैमित्तिक (पर्व/उत्सव) होता है; साधुओं का हर समय। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मंगल आशीष

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