Tag: कर्म
कर्म / भोग
(पढ़ने की उम्र में भोग भोगोगे तो जीवन बर्बाद होगा) कर्म-भूमि में पैदा होकर, उसे भोग-भूमि बनाने की चेष्टा करोगे तो और क्या होगा !
कर्म और पराधीनता
हम कर्म के आधीन हैं (प्राय:/साधारणजन), पर कर्म भी पराधीन हैं – द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के । (जैसे दलदल के पेड़ अपने बीजों
विग्रह गति में कर्म बंध
कार्मण शरीर की वजह से विग्रह गति में कर्म बंध होता है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
कर्म / नोकर्म
“कर्म” परिवर्तित करता है, “नोकर्म” प्रभावित करता है, “संकल्प” इनके Effect को Neutralize करता है ।
कर्म और भक्ति
अच्छा तो अपने कर्मों से होता है, अच्छाई भगवान/गुुुुरु की भक्ति से । चिंतन – एकता पुणे
कर्म / पूजा
हर कर्म पूजा नहीं होती । जो खटकर्म/दुष्कर्म से हटकर सत्कर्म किया जाता है, वह पूजा होती है ।
कर्म
कर्म बछड़े जैसे हैं, जो 100 गायों में छिपी अपनी माँ को ढ़ूँढ़ ही लेता है ।
कर्म
इहभव और परभव के कल्याण के लिये…. कर्म-फल की परवाह करना, (जैसे ये करने का क्या फल होगा, ये ना करने का क्या फल होगा)
कर्म / धर्म
मुख्यत: कर्म से वैभव, धर्म से संतोष और शान्ति । सो अन्तरंग में धर्म रखकर कर्म करो, खटकर्म से दूर रहो ।
कार्य/कर्म
सभी कार्य कर्म नहीं, यश और फल की कामना से किया गया “कार्य” है । निष्काम कार्य ही “कर्म” है ।
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