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मन
मन वस्तु के पास जाता है या वस्तु मन के पास आती है ? मन और चक्षु इंद्रिय, अप्राप्यकारी होते हैं, जिनके पास ना वस्तु
जाप में मन
जाप में मन इसलिये स्थिर नहीं रहता क्योंकि हम बाकी समय उसे तेजी से चलाते रहते हैं जैसे तेज पंखा देर में रुकता है ।
मन और इंद्रियाँ
इंद्रियों का व्यापार जब रुकता है, तब मन का व्यापार (असली रूप में) शुरू होता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी (मज़बूरी में मन को
मन और तन
चक्की के दो पाटों में से एक स्थिर और दूसरा गतिमान हो…… तभी अनाज पिसता है । इसी प्रकार मनुष्य में भी दो पाट होते
मन
मन से किया गया कार्य अच्छा होता है, मालिक प्रवृत्ति का होता है । मन का किया गया कार्य दु:ख देता है, सेवक प्रवृत्ति का
मन
मन का स्वभाव सकारात्मक है । उसे मना करोगे तो वह मानेगा नहीं, उसे बताओ कि उसे क्या करना है, वह करेगा । तब मन
मन
“मन” बड़ा चमत्कारी है, …. इसके …… आगे “न” लगाने पर वह “नमन” हो जाता है, और पीछे “न” लगाने पर “मनन” हो जाता है
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