मन और तन
चक्की के दो पाटों में से एक स्थिर और दूसरा गतिमान हो…… तभी अनाज पिसता है ।
इसी प्रकार मनुष्य में भी दो पाट होते हैं….
एक मन और दूसरा तन…
यदि मन स्थिर और तन गतिमान रहे…
तभी सफल व्यक्तित्व संभव है….
(मुनीष-देहली)
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आजकल ज्यादातर लोग तन की ओर ध्यान केंद्रित करते हैं न कि मन की ओर इसके कारण दुखी रहते हैं। तन की बीमारियों का इलाज सम्भव है लेकिन मन को पवित्र बनाने के लिए आत्मा पर आस्था रखना चाहिए तभी कल्याण होगा।