Tag: कर्म

कर्म / भोग

(पढ़ने की उम्र में भोग भोगोगे तो जीवन बर्बाद होगा) कर्म-भूमि में पैदा होकर, उसे भोग-भूमि बनाने की चेष्टा करोगे तो और क्या होगा !

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कर्म और पराधीनता

हम कर्म के आधीन हैं (प्राय:/साधारणजन), पर कर्म भी पराधीन हैं – द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के । (जैसे दलदल के पेड़ अपने बीजों

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कर्म / नोकर्म

“कर्म” परिवर्तित करता है, “नोकर्म” प्रभावित करता है, “संकल्प” इनके Effect को Neutralize करता है ।

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कर्म और भक्ति

अच्छा तो अपने कर्मों से होता है, अच्छाई भगवान/गुुुुरु की भक्ति से । चिंतन – एकता पुणे

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कर्म / पूजा

हर कर्म पूजा नहीं होती । जो खटकर्म/दुष्कर्म से हटकर सत्कर्म किया जाता है, वह पूजा होती है ।

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कर्म

कर्म बछड़े जैसे हैं, जो 100 गायों में छिपी अपनी माँ को ढ़ूँढ़ ही लेता है ।

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कर्म

इहभव और परभव के कल्याण के लिये…. कर्म-फल की परवाह करना, (जैसे ये करने का क्या फल होगा, ये ना करने का क्या फल होगा)

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कर्म / धर्म

मुख्यत: कर्म से वैभव, धर्म से संतोष और शान्ति । सो अन्तरंग में धर्म रखकर कर्म करो, खटकर्म से दूर रहो ।

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कार्य/कर्म

सभी कार्य कर्म नहीं, यश और फल की कामना से किया गया “कार्य” है । निष्काम कार्य ही “कर्म” है ।

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मंगल आशीष

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