आ. श्री शांतिसागर जी
आचार्य श्री शांतिसागर जी
आचार्य श्री ने जब दक्षिण से उत्तर की ओर विहार किया, तो उनसे अनुरोध किया गया कि उत्तर में परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं है, अतः कोई मंत्र साध लें।
आचार्य श्री का उत्तर था, “जिसे लोग णमोकार मंत्र में जपते हैं, वह अपने संकट निवारण के लिये मंत्र सिद्ध करेगा! मेरा जीवन ही मंत्र है।”
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि आचार्य श्री शान्तिसागर महाराज ने दक्षिण दिशा से उतर भारत में आना हुआ था।उस समय अंग्रेजों का शासन चल रहा था। शान्तिसागर महाराज से पहले जैन धर्म का अस्तित्व कम रह गया था। लेकिन आचार्य श्री धर्म के प्रति श्रद्धा एवं समर्पण भाव था। णमोकार मंत्र अनादिकाल काल से प्रचलित था , लेकिन उस मंत्र को बिना सिद्ध करके उत्तर भारत का भ्रमण किया गया था। अतः आजकल सभी आचार्य एवं सभी मुनियों के द्वारा ही जैन धर्म का विकास हो रहा है।