दर्पण साबुत होता है तब सब उसे देख-देख कर चलते हैं,
टूट जाता है तो उससे ही बच-बच कर चलते हैं ।
दर्पण यदि आचरण के फ्रेम में जड़ जाय तो टूटने का डर ही नहीं रहेगा ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि दर्पण साबुत होता है उसे देखकर चलते हो लेकिन टूट जाने पर बच बच कर निकलते हो। अतः जीवन में ऐसा आचरण होना चाहिए ताकि अपने को बच बच कर चलने में कभी समस्या उपस्थित न हो सके और जीवन में दाग़ न लग सके।
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उपरोक्त कथन सत्य है कि दर्पण साबुत होता है उसे देखकर चलते हो लेकिन टूट जाने पर बच बच कर निकलते हो। अतः जीवन में ऐसा आचरण होना चाहिए ताकि अपने को बच बच कर चलने में कभी समस्या उपस्थित न हो सके और जीवन में दाग़ न लग सके।