आत्मा के भेद उनकी क्रियाओं के अनुसार आचार्य कुंद्कुंद ने किये हैं –
जो बाहर की ओर देखे “बहरात्मा”,
अंदर की ओर देखे “अंतरात्मा”,
पापों में लिप्त “पापात्मा”,
संसारी – “अशुद्ध-आत्मा”,
सिद्धों की “शुद्धात्मा” ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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आत्मा- – जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि आदि गुणों के कारण वर्तता या परिणमन करता है वह ही आत्मा है। इसकी तीन भेद बताए गए हैं, बहिरात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा। अतः आचार्य कुंदकुंद ने भी उल्लेख किया गया है कि बाहर की ओर देखे तो बहिरात्मा, अंदर की ओर देखे तो अंतरात्मा, पापों में लिप्त संसारी को अशुद्व आत्मा कहा गया है और सिद्वों को शुद्धात्मा कहा गया है जिनको परमात्मा कहते हैं।
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आत्मा- – जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि आदि गुणों के कारण वर्तता या परिणमन करता है वह ही आत्मा है। इसकी तीन भेद बताए गए हैं, बहिरात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा। अतः आचार्य कुंदकुंद ने भी उल्लेख किया गया है कि बाहर की ओर देखे तो बहिरात्मा, अंदर की ओर देखे तो अंतरात्मा, पापों में लिप्त संसारी को अशुद्व आत्मा कहा गया है और सिद्वों को शुद्धात्मा कहा गया है जिनको परमात्मा कहते हैं।