आज आत्मा अनात्मा बनी हुई है/अनात्मा को ही आत्मा (जीव) मान बैठी है ।
आत्मा द्वारा आत्मा के सही स्वरूप को जानना/मानना महत्वपूर्ण है ।
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जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि में परिणमन करता है वही आत्मा है।आत्मा बहिरात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा के रूप है।अतः प़थम आत्मा के स्वरुप को जानना आवश्यक है।सभी बहिरात्मा का विचार करते हैं जब कि अंतरात्मा को जानना चाहिए ताकि परमात्मा बनने का प़यास होगा।आत्मा में विकार यानी राग, द्वेष, मोह आदि भरे हुए हैं जिसके कारण उसके स्वरुप को नहीं जानते हैं।
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जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि में परिणमन करता है वही आत्मा है।आत्मा बहिरात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा के रूप है।अतः प़थम आत्मा के स्वरुप को जानना आवश्यक है।सभी बहिरात्मा का विचार करते हैं जब कि अंतरात्मा को जानना चाहिए ताकि परमात्मा बनने का प़यास होगा।आत्मा में विकार यानी राग, द्वेष, मोह आदि भरे हुए हैं जिसके कारण उसके स्वरुप को नहीं जानते हैं।