एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य पर प्रभाव
एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य पर प्रभाव व्यवहार से होता है, निश्चय (शुद्ध आत्मादि) से नहीं ।
वह प्रभाव अजीव (घंटों) तक पर होता है (भगवान के जन्म पर),
क्षायिक सम्यग्दर्शन के लिये पादमूल चाहिये,
यदि प्रभाव नहीं होता तो प्रवचन/सामूहिक स्वाध्याय क्यों ?
ये प्रभाव निमित्त-नैमित्तिक सम्बंध हैं ।
हाँ ! एक द्रव्य दूसरे द्रव्य को बना नहीं सकता ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
One Response
द़व्य का मतलब गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं या जो उत्पाद व्यय और ध्रौव्य से युक्त है,द्रव्य छह प़कार के होते हैं । एक द़व्य दूसरे द़व्य को बिगाड़ नहीं कर सकते हैं। निश्चय का मतलब जो निज शुद्ध आत्म तत्व से सम्यक,श्रद्वान, ज्ञान और आचरण रुप है,यह अटल होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि एक द़व्य का दूसरे द़व्य पर प़भाव व्यवहार से होता है अर्थात निश्चय यानी शुद्ध आत्मा में नहीं होता है। अतः यह प़भाव निमित्त नैमित्तिक संबंध होता है लेकिन एक द़व्य दूसरे द़व्य को बना नहीं सकता है।